पत्रकार और ईलाज के नाम SGPGI के लूटकांड की सच्ची घटना

SGPGI के लूटकांड की सच्ची घटना

देवकी नंदन मिश्रा की चली कलम और दिखाया आईना ——–
—————————————————————————-
माननीय उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जी
आज मैंने अनुपम खेर की लखनऊ पर बनी फ़िल्म “द सिग्नेचर” देखी। प्राइवेट अस्पताल मरीज़ के परिजनों को डराकर उन्हें तरह लूटते हैं इस फ़िल्म में फ़िल्माया गया है।
लेकिन आज मैं आपको एक पत्रकार और PGI के लूटकांड की सच्ची घटना बताता हूँ। गोरखपुर के पत्रकार मित्र मनोज कुमार नवल के सीने में तीन दिन पहले दर्द होता है। वह कार्डियोलाजिस्ट में डा आसिफ़ शकील के यहाँ जाते हैं। मनोज को देखने के बाद डॉ आसिफ़ शकील सवेरा हार्ट सेंटर सूर्यकुण्ड उन्हें PGI लखनऊ के लिए रिफ़र कर देते हैं। डॉ आसिफ़ कहते हैं डॉ नवीन गर्ग को PGI पहुँचकर फ़ोन कर लीजियेगा वह भर्ती कर लेंगे। वह तीन दिन पहले अपने बेटे और दामाद के साथ शाम को PGI पहुँचते हैं। इमरजेंसी में पहुँचकर बताते हैं कि डॉ नवीन गर्ग के पेशेंट हैं मनोज को तत्काल भर्ती कर लिया जाता है। उनके बेटे की डॉ नवीन गर्ग से फ़ोन पर बात भी होती है। यह उस PGI में हुआ जहाँ मरीज़ को भर्ती कराने के लिये लोगों को नाकों चने चबाने पड़ते हैं फिर भी मरीज़ बिना सिफ़ारिश भर्ती नहीं होता है।
मनोज के भर्ती होने के बाद डाक्टर की टीम आती है और सेमी प्राइवेट वार्ड में उनकी जाँच होती है। डॉ बताते हैं कि दो स्टंट पड़ेगा और डेढ़ दो लाख स्टंट का लगेगा और दवा के पैसे अलग से। मनोज ने बोला ठीक है कर दीजिये। अब PGI के डाक्टर का खेल यहीं से शुरू होता है। अगली सुबह डॉ नवीन गर्ग आते हैं और मनोज और उनके परिजनों से बिना एंजियोग्राफ़ी किये ही बोलते हैं आपने काफ़ी कैल्शियम जमा है और स्टंट का ही केवल 6 लाख लगेगा। मनोज को लगता है उनके साथ कोई चीटिंग पीजीआई में हो रही है। वह कहते हैं इतने पैसे नहीं हैं। डॉ नवीन बोलते हैं इतना ही पैसा लगेगा। मनोज ने बोला आप मुझे डिस्चार्ज कर दीजिये। वह डिस्चार्ज होकर कल यानी 10 अक्तूबर को लखनऊ के सबसे महँगे मेदांता में दिखाते हैं। उनकी एक्जियोग्राफ़ी होती है और कल ही दो स्टंट डल जाते हैं जानते हैं कितने में मात्र सवा दो लाख में। आज उनकी छुट्टी हो गई और गोरखपुर चले भी गये।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने अभी हाल ही में कहाँ था कि SGPGI को देश में नंबर वन बनाना है- लेकिन यहाँ तो लूट में नंबर 1 बनने की दौड़ चालू है
मेरे कुछ सवाल हैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक जी। और PGI के निदेशक से।
1- गोरखपुर के डॉ आसिफ़ के भेजे मरीज़ फ़ौरन कैसे और क्यों PGI में भर्ती कर लिये जाते हैं? और सभी मरीज़ डॉ नवीन गर्ग ही क्यों भर्ती करते हैं?
2- क्या PGI में स्टंट लगाना मेदांता से भी तीन गुना महँगा है? अगर है तो फिर PGI में मरीज़ क्यों जाय?
3- मुझे गोरखपुर से पहले भी सूचना मिली थी कि डॉ आसिफ़ के मरीज़ को पहुँचते ही PGI एडमिट कर लेता है। क्या PGI के डॉ के डॉ आसिफ़ एजेंट हैं और उनको भी मरीज़ से तीन गुना वसूले जाने वाले पैसे में से हिस्सा मिलता है। क्योंकि गोरखपुर के अन्य डॉ के रिफ़र मरीज़ PGI में धक्के खाते रहते हैं उन्हें बेड नहीं मिलता।
4- PGI की तरफ़ से घोषित किया जाय कि एक स्टंट की क़ीमत क्या है उसे बोर्ड पर डिस्प्ले किया जाय ताकि मरीज़ को पता चल सके। जितने तरह के स्टंट हों सब के दाम अख़बार में छपवाया जाय ताकि मरीज़ के साथ ठगी न हो सके।
5- यह मामला गोरखपुर का है। मंत्री जी और निदेशक महोदय इस मामले की जाँच करवाइये और PGI को लूट का अड्डा बनाने वाले डॉ से इसे मुक्ति दिलवाये अन्यथा इसे माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के भी संज्ञान में लाया जायेगा।
यह पोस्ट इस वजह से लिखा हूँ क्योंकि आप भी अगर इस तरह की लूट के शिकार हुए हों तो आप भी ज़रूर अपनी बात बताइये।

Alok Mohan Srivastava

मेन एजेंट डॉ आसिफ़ हैं 60% इन्हीं की डिमांड है दाँत में दर्द हो तो भी PGI भेज कर स्टंट डलवा देते है मैंने 7/8 साल पहले सुना था पर बहुत ताज्जुब हुआ था कि सरकारी संस्थान में ये कैसे हो सकता है विश्वास नहीं हुआ आज पुष्ट हो गया

Manoj Kumar Nawal

*मेरे साथ जो घटना घटी वह आपने सही लिखा है, पीजीआई Says यह धंधा सेमी प्राइवेट में कब से चल रहा है पता नही। हमने भी सुना था कि पीजीआई में बेड नही जल्दी मिलता है। हमे तो जाते ही आसिफ के पत्र से मिल गया क्योंकि उसमें डॉक्टर के नाम से रेफर था*

Sujeet Kumar Gupta

पीजीआई को सरकार और दवा कम्पनियां बड़े पैमाने पर दवा की आपूर्ति करती है लेकिन जब मरीज ओपीडी में डाक्टर से दिखाता है तो डाक्टर मरीज को देखने के बाद ओपीडी के पर्चे पर दवा लिखता। मरीज जब दवा को लेने के लिए पीजीआई के दवा वितरण केन्द्र पर घंटों लाइन लगाकर समस्त फार्मेलिटी पूरी करता है तो पता चलता है कि जो महंगी दवाई है वह सभी बाहर से लेनी पड़ेगी। उन दवाओं के स्टाक मेंं नहीं होने का हवाला दे दिया जाता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि डाक्टर द्वारा सरकारी पर्चे पर लिखी दवाईयां स्टाक से कहाँ जा रही है। अभी यह तो एक बानगी है…

Sushil Dubey

अब चली कलम,,और फटी दलालों की

Shashi Nath Dubey

पाठक जी कुछ नही करेगे, उनकी सुनता कोन है, कुछ मुंहलगे पत्रकार को छोड़ के ओ किसी के काम भी नहीं करते, मिठाई लाल है पर ब्राह्मण कोटे से मजा कर रहे, अपने विधानसभा के चलते पुर्जे को ही अहमियत देते है आम तो सिर्फ फोटो सूट के लिए ही है

Niraj Sudele

एकदम सत्य एवं सटीक बिश्लेषण पोस्ट, इसके बाद भी अगर शासन जागरूक नहीं हुआ तो दुर्भाग्य है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button